आदतें
मेरी-तुम्हारी
कितनी
मिलती
जुलती
थी
बिल्कुल
एक
जैसी
ही....
मध्यम-मध्यम
लय
में,
एक
जैसी
साँस
लेने
की
आदत
एक
दूसरे
की
खनकती
हुई
बातों
में,
एक
जैसे
हँसने
की
आदत
बिखरते
हुए ख़ुश्बू को,
एक
जैसे
समेटने
की
आदत
पुरानी
कोई
धुन
पे,
एक
जैसे
गुनगुनाने
की
आदत
चाँद
को
पूरा
खिलता
देख,
एक
जैसे
मुस्कुराने
की
आदत
सीधे
रास्ते
पे
चलते
हुए,
एक
दूसरे
के
हातों
को,
एक
जैसे
पकड़ने
की
आदत
दीवार
पर
लगी
तस्वीर
को,
एक
जैसी
टकटकी
लगा
कर
देखने
की
आदत
दूर
रहकर
भी,
घड़ी-घड़ी
एक
दूसरे
को,
एक
जैसा
ही
प्यार
जताने
की
आदत
बिना
शब्दों
के
कहे,
खामोशी
की
आवाज़
से,
मन
के
हाल
को,
एक
जैसे
जानने
की
आदत
और
कभी
एक
ही
लव्ज़
कहकर,
अधूरा
को,
एक
जैसा
पूरा
करने
की
आदत
लेकिन,
इस
नये
मौसम
में
लगता
है
मानो......आदत
मेरी-तुम्हारी
बदल
सी
गयी
है
आदतें
एक
सी
नही
होती....
क्योंकि,
आदत
अनुसार,
मैने
कई
खत
लिखे
हैं
तुम्हें.....
तुम्हारी
जवाब
देने
की
आदत
छूट
गयी
है
शायद.......
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