डर, जीझक और शर्म के बंधन
आज मानो खुल से रहे हैं
अपने–आप, बरबस ही.......!
और जैसे मेरे दिल ने, हॅस कर, चुप-चाप
यह सब होने की इजाज़त दे दी....... :)
शायद, इंतेज़ार ख़त्म हो जाए अब
सरकती लम्हों ने इशारे में कहा है मुझसे....
मैं खुश हूँ, बहुत खुश !!
याद है मुझे:
तुम्हारी मुस्कुराहट में, हज़ारों ग़मों को खोया था मैंने
तुम्हारी प्यारी बातों में खो कर, अपने अप को पाया था मैंने
और
तुम्हारी हसीन बाहों में, घर को बनाया और सजाया था मैंने
ख्वाहिश......सब पूरी हुई, ख्वाब रोज़-रोज़
आखों में सजने लगे
दिन खुल कर-जी कर, गुज़ारने की
अच्छी आदत लग गयी.....
मैं खुश थी, बहुत खुश !!
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आज फिर से जैसे,
एक बहुत खूबसूरत, पुराने एहसास ने
किवाड़ खटखटाया
कोइ करीबी “दोस्त” घर मिलने आया है शायद ! :)
एक तरफ,
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बारिश ने बसस-बरस कर अपने आने की खबर दी
बूँदो के पड़ते ही, सब नज़ारे बदले से नज़र आए !
सूखी सी, तरसती हुई वो ज़मीन पर
जैसे हर तरफ रंग बिखर से गये.....
सौंधी-सौंधी सी खुश्बू
रिम-झिम बूँदो की सरगम, सब
साफ सुनाई दे रही थी
दिनों की खामोशी.....पल में दूर हो गयी !
और दूसरी तरफ,
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मैं भी भीग रही थी......
कुछ हसीन बीताए हुए रूमानी
यादों के साए में.....
तुम्हारी मीठी हँसी की खिलखिलाहट
ढेर सारी शरारत..... :)
आँखें मूंद कर, ग़ुज़ारे उन लम्हों
के सिरहाने, एक सुकून था....!
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बारिश के बहाने से, ख़यालों में ही सही
तुम्हें फिर से,
अपने......इतने करीब पाया !
यूँ ही इसे,
सबसे खुशनुमार और रूमानी मौसम नही कहते....
आज याकीन हो चला है, मुझे ! :)
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