आज फिर सपनों को पिरोया है मैने
आज फिर सपनों को पिरोया है मैने
और इसी तरह, लहराते मन को सजाया है मैने
मुस्कुराते हुए एहसास की सुई में
खिल-ख़िलाते सफेद धागे को समाया है मैने
मेरी उंगलियों के बीच, घूमते-सैर करते
उन धागो के साथ गुदगुदाया है मैने
शरारत का चश्मा पहेनकर, इधर-उदार नज़र दौड़ाकर
मनचली, चार सहेलियों को ढूंड कर लाया है मैने
चतकती सी - प्यारी सी, लाल हरी नीली और गुलाबी
रंगों के पोशाक़ में, उन्हें dress-up करवाया है मैने
फिर थोड़ी नज़ाकत के साथ, सभी सहेलियों को धागे के सहारे
कस-कर, एक मजबूत गाँठ में, क़ैद कर दिया है मैने
कोरे काग़ज़ पे, एक-एक करके, बिखरे उन हसीन टुकड़ों को
मचलते देख, अपने ज़ुस्तज़ू को नयी राह दिया है मैने
आज फिर सपनों को पिरोया है मैने
आज फिर सपनों को पिरोया है मैने
और फिर इसी तरह, एक और हसीन चाँद खिलाया है मैने
~ ~ :)
3 comments:
~:)
sweety !~
Thanks' a bunch ~~
Amazing bookmark.. love it! I'm sure it took a lot of effort, I remember how long it takes to get even an inch of that design done ! Amazing.
Your poem is fantastic. It is definitely one of the best you have written so far :)
~~
@ Preeti:
thank you so much dear ! :)
I'm happy that you liked the poem......i too enjoyed it to the core while composing it :)
~:)
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