Friday, March 27, 2020

ऊँचा उड़ो....!
























तुम्हें यूँ देख कर संतोष होता है।
तुम्हें यूँ देख मन स्थिर होता है।

जानती हूँ अब तुम ख़ुशबू हो
आसमान हो
खुद में एक जहान हो।

बारिश हो और कोपल भी।
तुम चहकती चिड़िया, फूल और भँवरा भी।

रात भी तुम, सुबह की धूप भी।
तुम आनंद और मुस्कुराहट भी।

प्रकाश की एक किरण भी, पूरा चाँद भी।
तुम ही एक पल भी, और पूरा होता साल भी।

उमंग भी, ठहराव भी
उमड़ते अरमान और संतुष्टि भी।

तुम यह सब भी, और एक ख़ाली canvas भी।

अभी तुम्हें उड़ना है, ऊँचे आसमान में।

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