Friday, March 27, 2020

ऊँचा उड़ो....!
























तुम्हें यूँ देख कर संतोष होता है।
तुम्हें यूँ देख मन स्थिर होता है।

जानती हूँ अब तुम ख़ुशबू हो
आसमान हो
खुद में एक जहान हो।

बारिश हो और कोपल भी।
तुम चहकती चिड़िया, फूल और भँवरा भी।

रात भी तुम, सुबह की धूप भी।
तुम आनंद और मुस्कुराहट भी।

प्रकाश की एक किरण भी, पूरा चाँद भी।
तुम ही एक पल भी, और पूरा होता साल भी।

उमंग भी, ठहराव भी
उमड़ते अरमान और संतुष्टि भी।

तुम यह सब भी, और एक ख़ाली canvas भी।

अभी तुम्हें उड़ना है, ऊँचे आसमान में।

~~~

Sunday, March 15, 2020

When you Begin Again!


Yes, you read it right. Today, we begin our journey together, once again :)

The stay-away from home (read my blogging rink) has been too long this time; the seven-mystic-years in between bear a testimony to the countless love and blessings I have received, the joy that poured out and the sheen that promised to stay.

So, with the conviction to blossom again, I hold my pen straight-up, fill it with my passionate coloured ink and tilt it, to perfectly slip in-between my fingers, to ‘BEGIN AGAIN”.

Hmmm…I know that summers are approaching and with all the days getting longer, family & friends wouldn’t mind to be in awe over another story, a story that is plotted, acted and played differently. So, my dear readers, I solemnly invite you all to this new story-telling sessions, very zesty and very orangey this time, I PROMISE!  

Okay, (with a BIG BREATH INHALE!) now that I am officially beginning again, I already feel sooo GOOD! :)

Damn, I realise what I missed all these years, the influx of thoughts and the anxiety to hold on to each and every bit of these, even the teene-tiny ones, the stillness of the passing hours as I put-to-rest the fluttering child-like soul inside me, the crackling noise of the keys that translate each word perfectly onto the screen and finally the PROUD SMILE that makes the heart inside of me go la-la-laa-la-laaa!~~

A sneak-peak into what’s in the menu.

The entree would be a refreshing collection in the form of snapshots of my newly acquired hobbies, my daily-conundrum to choose between sweet or savoury or my first-hands experience of being a newbie ‘Plant Parent’.

I definitely see the all-time favourite ‘musings’, actually my forte too, concocted with the perfect blend of thoughtfulness, mindfulness and meaningfulness.

The next one on the list is that which is full with flavours, spilling aromas and grabbing all attention, from wherever it is sitting on the dining table, always. Yes, I meant the mesmerised and the magical ‘poems and couplets’ I compose in Hindi.

I can see a few new additions to the list as well, with my amateur mind, skilfully playing with the spicy & tangy ‘humour-in-life’ taste buds and my out-of-the box budget-friendly dishes, reflecting aesthetics, simplicity and positivity in my humble place of abode.

Dessert is more sugary this time, as I intend to share many profound and soulful insights about phrases or words in my ‘Book Indulgences’ and of course the ‘Ruminate Again’ candy that is perfect to kick in, when we need the right dose of inspiration for us to get-happily-going.

While I pour-my-heart-out in preparing these tasty treats for dear readers, I assure you all that the primary ingredient still remains i.e the purpose of my story-telling is to bridge the road to "WHAT we LOVE to HAVE and WHAT that thing does to MAKE our LIFE more beautiful and worth living for.”


You will all be served well! :)

Finally, no meal is complete till we hear and share our personal experiences over the table. I would be glad to hear back comments and suggestions from you all.

It’s time now to pay your check and take a safe exit till the time we meet again on this very table.

Cheers to a good and happy life!!

Saturday, February 2, 2013

Savouring Cookies....! :)



'Cookies' draw my attention all the time...the rich brown textured color, crispy-ness, cracked lines meandering through-out the floor of the cookie, its delicate and crumbling existence, all make my heart go circular.....literally :)

This Saturday afternoon, I indulged into eating cookies, BiG round cookies, filled with chocolate, butter n sugar.
AHH-hhh!

With eyes closed and heart pacing for more, I was not at all inclined to stop... :P

Then I stopped n settled myself for a second....only to discover that the last cookie I indulged into, gifted me a “SmiLe” apparently noticeable on my face, which lasted for long......!


पलकें....!! :)


   टक-ट-की लगा कर मत देखो मुझे
पलकें मूँद लो....धीरे से

मैं पलकों के झपकने के बाद दिखाई देती हूँ....

~~~

Wednesday, January 30, 2013

आदतें....!



आदतें मेरी-तुम्हारी कितनी मिलती जुलती थी
बिल्कुल एक जैसी ही....


मध्यम-मध्यम लय में, एक जैसी साँस लेने की आदत
एक दूसरे की खनकती हुई बातों में, एक जैसे हँसने की आदत

बिखरते हुए ख़ुश्बू को, एक जैसे समेटने की आदत
पुरानी कोई धुन पे, एक जैसे गुनगुनाने की आदत

चाँद को पूरा खिलता देख, एक जैसे मुस्कुराने की आदत
सीधे रास्ते पे चलते हुए, एक दूसरे के हातों को, एक जैसे पकड़ने की आदत

दीवार पर लगी तस्वीर को, एक जैसी टकटकी लगा कर देखने की आदत
दूर रहकर भी, घड़ी-घड़ी एक दूसरे को, एक जैसा ही प्यार जताने की आदत

बिना शब्दों के कहे, खामोशी की आवाज़ से, मन के हाल को, एक जैसे जानने की आदत
और कभी एक ही लव्ज़ कहकर, अधूरा को, एक जैसा पूरा करने की आदत


लेकिन,
इस नये मौसम में लगता है मानो......आदत मेरी-तुम्हारी बदल सी गयी है

आदतें एक सी नही होती....

क्योंकि,
आदत अनुसार, मैने कई खत लिखे हैं तुम्हें.....
तुम्हारी जवाब देने की आदत छूट गयी है शायद.......

~~~

Sunday, January 13, 2013

इच्छायें...! :)




‘तीन’ इच्छायें मेरी पूरी कर दो:


पहली:
बंद आँखों से 
तुम्हें जी भर कर,
टटोल-टटोल कर महसूस करूँ


दूसरी:
तुम्हारे सीने से लग कर,
अपने खुले कानों से, 
तुम्हारी अनकही कहानियाँ सुनूँ


ना....ऐसे में मैं कुछ भी 
अपने होटो से कहना नही चाहती :)




आखरी:
तुम्हारे मेरे आस-पास होने के 
ज़ायक़े में, मीठी
मुस्कुराहट के रस में, 
खुद को डूबोई रखूँ......:)

~~~

साँस....!!


कुछ 'थोड़ा' पाने की आस में
कुछ 'ज़यादा' भाग रही थी मैं

आज,
ना जाने, क्या हुआ मेरे भीतर, कि

कुछ 'ना' पाने के लिए,
कुछ 'भी ना' पाने के लिए
कुछ थम सी, कुछ अचल सी, हो रही हूँ मैं

पहले भागते हुए भी, साँस मध्यम-मध्यम चल रही थी
आज
थम कर भी,
साँस की तेज़ लय को, रोक नही पा रही......

ये साँस ना जाने कैसे थमते हैं....!!

~~~

खामोशी...!!


कुछ भी 'खामोश-सा' नही होता
कुछ भी 'खामोशी' से नही होता
'खामोशी' ब्रह्म है एक, अपने भीतर एक चीखती और चिल्लाती हुई शोर को दबाए.....


तुम भी तो, 'खामोशी' से, दबे पाव.....जा रहे थे
है ना !!
अपने पीछे, सब छोड़ते हुए.....

एक थमने को बेकरार आँसू की कतार 
बारीकी से साथ में गुज़ारे लम्हात
परछाईयों को टटोलते से दो हाथ
रेत पे फिसलते हुए अनगिनत अरमान
तितलियों जैसे पक्के रंगों में उभरते ख्वाब
तेरी खुश्बू समेटे दरो-दीवार 

और.......
मेरी धड़कानों से नही, तुम्हारे इंतज़ार के कदमों से चलती हुई धीमी-धीमी सी साँस


'खामोशी' से जलता, पिघलता सा...
शांत प्रतीत होता यह दीप भी....
ब्रह्म है कोई....
अपने भीतर बहुत कुछ समेटे हुए....
चुप-चाप....!!

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Sunday, October 14, 2012

खिलते हुए !! :)


My previous post relates to opening up, opening up to your heart and prettifying it with colors of a ‘NeW sEaSoN’. The heart, which was enveloped with inhibitions, now gets exposed to the freedom, leading it to turn up and see the ‘blue’ sky, ‘yellow’ sun and ‘green’ leaf.

‘Blue’, ‘yellow’ and ‘green’ does not only signify strong colors but also ‘true’ colors, for things to which they are always associated to. You explain the sky with color ‘blue’, the sun with ‘a yellow’ and a leaf with ‘a green’.

“OpeNing up” things to their ‘tRuE’ colors, make them glow with such pristine beauty like never before, leaving you in awe. It’s a treat to just ‘feel’ the ongoing progression, silently, with no noise at all, resulting in a full-bloom.


Just like a flower that opens up to the fresh air, the sunlight and turns into a marvel..! :)



खुलते हुए !! :)


तुम्हारी नटखट यादे फुर्र से उड़ कर 
कमरे से बाहर चली जाया करती हैं.......

उनको समेटते-समेटते ही दिन गुज़र जाया करते हैं मेरे!

मैने भी समझदारी दिखाई; दरवाज़े की टूटी कुण्डी ठीक करवा लिया
अब कोई डर नही....:)


लेकिन, कुण्डी लगे बंद दरवाज़े के भीतर
तुम्हारी याद, तुम्हारी खुश्बू, तुम्हारे स्पर्श से खिले दीवारें, 
शीशे से झाकती तुम्हारी मुस्कुराहट, ज़मीन पे पड़े तुम्हारे पैरों के निशान...
सब ठहर गये मानो!!

और, 
तब मैने जाना कि, 
यादें, स्पर्श, खुश्बू, मुस्कुराहट...
ये सब, तुम्हारे ही परछाई हैं, इसलिए तुमसे अलग नही है!!

उनके नटखट पन से-ही तो मैं जी रही थी,
कभी तुम्हारी मुस्कुराहट चेहरे पे सजा लिया, कभी तुम्हारी खुश्बू में डूब जाती और
कभी तुम्हारे स्पर्श में अपने आप को छुई-मुई सा समेट लिया....:)


किवाड़ की कुण्डी खोल दी है मैने, 
तुम्हारे एहसास को खुला रख छोड़ा है मैने....

और...

शाम होते ही, मेरा कमरा....
फिर से चहकने लगता है, जब नटखट यादें, 
दिन-भर की मस्ती से ठक कर, गोद में मेरे, सर रख, सोने की तैयारी करते हैं....!!



Thursday, September 6, 2012

इस रात की सुबह नही........! :)



इस रात की सुबह नही

टपकती सी, बूँद-बूँद तरसाती हुई सी रात
कई हज़ार लम्हो से जोड़ती और मिलाती हुई सी रात

कभी गुदगुदाती तो कभी गुर-राती हुई सी रात

मीठी नींद में तुम्हें थपकीयाँ देती
तो कभी,
खुली आँखों में बीतती हुई सी रात

इस रात की सुबह नही....!

पर,
इस रात से लगाव है मुझे :)

इस रात में ही तो,
वहाँ उपर...मेरे हज़ारों दोस्त खेलते हुए नज़र आते हैं

और मेरा 'चाँद'
मुस्कुराता हुआ मुझे 'Miss ya' messages भेजता है!


इस रात की सुबह नही....
ये रात पूरा और संपूर्ण है !

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Wednesday, August 29, 2012

Thi-rsT !!


  
 Pillow draws me to ‘a big’ sleep

      After i pour 
thirst-quenching water into my throat.

I once had “a deep” sleep 
in your arms 
with a thirsty wish in my heart! :)