तुम्हारी नटखट यादे फुर्र से उड़ कर
कमरे से बाहर चली जाया करती हैं.......
उनको समेटते-समेटते ही दिन गुज़र जाया करते हैं मेरे!
मैने भी समझदारी दिखाई; दरवाज़े की टूटी कुण्डी ठीक करवा लिया
अब कोई डर नही....:)
लेकिन, कुण्डी लगे बंद दरवाज़े के भीतर
तुम्हारी याद, तुम्हारी खुश्बू, तुम्हारे स्पर्श से खिले दीवारें,
शीशे से झाकती तुम्हारी मुस्कुराहट, ज़मीन पे पड़े तुम्हारे पैरों के निशान...
सब ठहर गये मानो!!
और,
तब मैने जाना कि,
यादें, स्पर्श, खुश्बू, मुस्कुराहट...
ये सब, तुम्हारे ही परछाई हैं, इसलिए तुमसे अलग नही है!!
उनके नटखट पन से-ही तो मैं जी रही थी,
कभी तुम्हारी मुस्कुराहट चेहरे पे सजा लिया, कभी तुम्हारी खुश्बू में डूब जाती और
कभी तुम्हारे स्पर्श में अपने आप को छुई-मुई सा समेट लिया....:)
किवाड़ की कुण्डी खोल दी है मैने,
तुम्हारे एहसास को खुला रख छोड़ा है मैने....
और...
शाम होते ही, मेरा कमरा....
फिर से चहकने लगता है, जब नटखट यादें,
दिन-भर की मस्ती से ठक कर, गोद में मेरे, सर रख, सोने की तैयारी करते हैं....!!
1 comment:
Nice..:)
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